Wednesday, February 15, 2012

कभी

कभी बारिश की बूंदों में नहा कर तो देखो ,
अपने मन की प्यास बुझा कर तो देखो ,

देखो सपने सब हो अपने ,
सभी को अपना बना कर तो देखो ,

माँ से बिछड़े बच्चों को ,
कभी गले लगा कर तो देखो ,

सदियों से बंद इन कमरों में कभी ,
धूप की एक किरण ला कर तो देखो ,

सूखे मुरझाये पौधों में कभी ,
पानी की फुहार डाल कर तो देखो ,

बदल जायेंगे सब ,सब के सब ,
बस एक बार ,
एक बार अपने आप को बदल कर तो देखो .....

3 comments:

  1. बहुत खूब
    सुन्दर आशावादी रचना
    उत्प्रेरक भी

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद मामाजी

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  3. soooooooooooooooo inspiring,,,,,,,,,,,,keep going on!!!!!!!!!!!!!

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धूल में उड़ते कण

धूल में उड़ते कण -सुशांत