Sunday, March 11, 2012

तो क्या रहा ...



कोई अपना-पराया न रहा ,
क्या खुशी के दो पल भी हमें गवारा न रहा ?

कोई तो आएगा इन सूनी गलियों में,
बहुत दिए दिलासे मैंने इस दिल को ,
 पर क्यों ,
 किसी का आना- जाना न रहा ?

चल पड़ा हूँ ऐसी मंजिल को ,
जिसके  न रास्ते रहे ,न ठौर-ठिकाना रहा ,


जिंदगी पूछती है ये सवाल अक्सर ,
क्या नई दुनिया में अब कोई पुराना न रहा ?

गर खो जाऊँ इस सूनी भीड़ में तो कह देना,
अच्छा हुवा ,
न सुशान्त रहा ,न उसका पैमाना रहा ..




5 comments:

  1. vaah,,,very well written,,,bt khud ko all time itna demoralize mat kiya karo.....

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  2. धन्यवाद पल्लवी जी और ऋतू जी

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  3. जिंदगी पूछती है ये सवाल अक्सर ,
    क्या नई दुनिया में अब कोई पुराना न रहा ?

    behatareen panktiyaan hain!

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  4. कोई तो आएगा इन सूनी गलियों में,

    यकीनन .. कोई तो आएगा ही आज नहीं तो कल
    अच्छी रचना

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धूल में उड़ते कण

धूल में उड़ते कण -सुशांत