Wednesday, January 20, 2016

एकांत

चलो साथी तुमको साथ लेकर कहीं दूर चलूँ

इस शोर से दूर किसी एकांत में ,

जहाँ हम जी भर कर  बातें करेंगे

प्यार से भरी बातें

नफरत का एक भी शब्द हम अपने आवाज़ में नहीं आने देंगे

लेकिन तुम रोना नहीं

तुम्हारे रोने से मुझे उस शोर में लौटने का भय दिखाई देने लगता है  

तुम मुझे अपने खुशियों के गीत सुनना जिसे सुन कर मैं सारे संसार के खुशियों को 

जी सकूँ

तुम हिन्दू मुस्लिम की बात न करना  अमीर गरीब की भी नहीं

वरना मै वापस उस शोर में गम हो जाऊंगा जिससे दूर हम निकल कर आ रहे है 

1 comment:

  1. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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धूल में उड़ते कण

धूल में उड़ते कण -सुशांत