Wednesday, March 27, 2024

तुम और मै का हम बनना

 पल पल बदलती दुनिया में 

कुछ लम्हे ऐसे भी है जो कभी नहीं बदलते

तुम्हारे साथ बिताये लम्हे एक स्थिर चट्टान से हैं 

जो हमेशा मजबूती के साथ हमारे साथ खड़ें हैं 

दूर रह कर भी हमारी ज़िन्दगी 

हमेशा एक दुसरे के इर्द-गिर्द घुमती रही है 

तुम और मै का हम बनना 

एक हसीन सपने का सच होने जैसा है लगता है 

हम जैसे साथ साथ यहाँ तक आये है 

वैसे ही साथ साथ आगे भी बढ़ते जायेंगे 

रास्ते कठिन होंगें हवाएं भी सख्त होंगी 

पर तुम साथ होगी तो सब आसान होता जायेगा  

हमारे रिश्ते की स्थिरता ही हमारी ताकत है

तुम

तुम जिंदगी की राह हो  

पहचान हो 

विश्वास हो  

तुम  नन्हे बच्चे के चेहरे पर उभरी  

असाधारण मुस्कान हो  

  


तुम संकल्प हो  

परिकल्प हो  

सहारा हो  

 


आंखों से ओझिल होते  

कश्ती का  किनारा  हो   


तुम वक्त हो  

आस हो  

आशा हो  


ज़िंदगी के खुशियों 

 की परिभाषा हो  



तुम चाँद हो  

सूरज हो  

तारा हो  


तुम ही नदियों से बहती अविरल धारा हो  


तुम दिन हो  

रात हो  

शाम हो  


तुम उदासियों को मिटाने वाली रेहनुमान हो  

 

Friday, August 24, 2018

धूल में उड़ते कण


हवा के थपेड़ों से गिरता रहा इधर-उधर 
मकसद क्या था,कहाँ था जाना
कुछ खबर न थी
बस बहता रहा इस नदी से उस नदी तक
इस डगर से उस डगर
जिसने जिधर चाहा बहा लिया
अपने रास्तों को पहना दिया

ठहरना चाहता था मै
लौटना था वापस अपने शून्य में
या पाना था उस शिखर को
जहाँ पहुँच कर जीवन की तमाम
उलझनों को एक ब एक सुलझाना था
पर लगता है जैसे बहुत देर हो चुकी है
शाम के अंधियारों ने रास्तों को धुंधला कर दिया है
और कोई हमसफ़र भी नहीं दिखता दूर तक
रास्ते अधूरे हैं मंजिल अज्ञात है

ये उदासी
जैसे जाड़े की सर्द सुनसान रात में आग की लपटों को ताकते
किसी आदिम के आँखों से बहता आंसू हो
जैसे किसी मोमबत्ती के जलने से रिसता पिघला मोम हो
या की जैसे सीली दीवारों के रंगों में घुलता पानी हो
और उस बदरंग होती दीवार के सहारे टिकाये बाल्टी में गिरते
बूंदों की टिपटिपाहट का सूनापन हो

जो हमसफ़र थे उनकी यादों की परछाई को समेट कर
फिर अलविदा कहने का वक्त है
मिलेंगे फिर किसी रोज़ चौराहों पर रास्तों का पता पूछते हुए
और फिर उधर मुड जायेंगे जिधर हवा बहा ले जाये

Wednesday, June 13, 2018


हे बापू
हम आये है यहाँ फिर एक बार तुम्हे वापस वतन ले जाने को
निकलो अब इस मूरत से और चलो हमारे साथ
आज हिसां की आग में लिपटा मेरा वतन  
तुम्हारी अहिंसा को भूल बैठा है
कॉर्पोरेट में जीता वतन
तुम्हारे ग्राम स्वराज को भूल बैठा हैं

आओ अब लौट चलें
हिंसा पर अहिंसा का और असत्य पर सत्य का परचम लहराएँ
कमजोरों की ताकत बने , असंगठित को संगठित बनायें
चलो बापू तुम्हारे सपनों को पूरा करें

इस मौसम की धुंध में मैं तुम्हे साफ़ देख पा रहा हूँ 
पहले से भी ज्यादा साफ़ 
और ये हवाएं जो तुम्हारे आंगन से दौड़ती चली आ रही है 
मेरे कानों में जो कह रही हैं
उसमें मैं तुम्हे महसूस कर सकता हूँ
अब तुम आओ या न आओ
मै यहीं ठहरे तुम्हारा इंतज़ार करूँगा ...ताउम्र


Sunday, September 10, 2017

कलम मरती है तो बहुत कुछ मर जाता है

बांध दिए जाने और ख़त्म हो जाने की बीच से जाने वाली
संकरी गलियों में वो जूझता रहा
शब्दों के तहखाने से बहुत दूर निकल चुका
वापसी में अपने ही पदचिन्हों को ढूंडने की नाकाम कोशिश करता   

बहुत कुछ पाने की चाहत में
उसने जो बचाया था वो भी ख़त्म कर दिया
और अब अपनी ही बनाई भूलभुलैया में खुद को तलाशता
भटकता है सुबह-शाम

जंगल की अज्ञात कुटिया में
लालटेन की बुझती हुई रौशनी की आड़ में
वो अपनी परझाई को टटोलते हुए
ज़मी पर लिख रहा था
कलम मरती है तो बहुत कुछ मर जाता है......


तुम और मै का हम बनना

 पल पल बदलती दुनिया में  कुछ लम्हे ऐसे भी है जो कभी नहीं बदलते तुम्हारे साथ बिताये लम्हे एक स्थिर चट्टान से हैं  जो हमेशा मजबूती के साथ हमार...