Monday, May 6, 2013

यादें


बिखरी पड़ी है हर ओर यादों कि परछाइयाँ ,
कुछ साथ गुज़ारे लम्हों कि मीठी सी अंगडाईयाँ,
यहाँ की हर गलियों ,हर क्लास रूम में, 
बना इतिहास हमारा,
भविष्य की कल्पनाओं का बना अदभुद संसार हमारा ,
इस छोटे से संसार में है यादों की अम्बार सा,
जहाँ कभी सेशनल का डर सताता था,
तो कभी सेमेस्टर कि होती थी घबराहट ,
कभी 30 नम्बर कि दौड लगते,
तो कभी रिजल्ट के इंतज़ार में सोना ही भूल जाते |
इन्टरनेट ओर फोन का बिल
हमारी जेबों को चट कर जाता था
फिर भी दोस्तों से बातों का सिलसिला कभी न खतम हो पता था,

हर साल स्कॉलरशिप के इंतज़ार में बैंक के चक्कर काटा करते थे ,
और हर किसी से बस एक ही सवाल पूछा करते थे “भाई क्या तुम्हारी आई ?”
कभी गुप्तार घाट ,तो कभी चौक ,कभी नाका,कभी सिविल लाइन्स में घुमा करते
तो कभी गोकुल ,पंचवटी ,शर्मास में
कभी न खतम हो ने वाली treat का मज़ा लिया करते थे |
दुनिया कि सारी परेशानियों को दरकिनार कर ,
बस अपने दोस्तों कि दुनिया में जिंदगी का मज़ा लिया करते थे,

लगता है जैसे कल ही की बात हो ,
जब हमने यहाँ एडमिशन लिया था ,
अभी तो एक दूसरे को जानना पहचानना शुरू ही किया था,
इतने में 4 साल कब बीत गए पता ही नहीं चला 
वक्त कि रफ़्तार का अंदाज़ा तक नहीं हुवा
अब जी चाहता है की रोक लूँ इन जाते हुवे लम्हों को
इन क्लासरूम को ,इन होस्टल को ,इन् टीचरों को ,इन दोस्तों को ,इन जूनियर्स को ,इस केम्पस को,
किसी तरह फिर से घडी को 4 साल पहले घुमा दूँ
फिर उन 4 सालों को जी लूँ
अफ़सोस अब ये संभव न होगा
नई राहें होंगी ,नई मंजिलें होंगी
नए आकाश में अपनी ये पतंगे होंगी
नए दोस्त होंगे ,नए इरादे होंगे ,
लेकिन वहाँ आप नही होंगे ,
बस मैं होऊंगा और आपकी यादें होंगी ,
और जब कभी ये मंज़र याद आयेंगे
आँखों को कुछ नम ज़रूर कर जायेंगे ,
पर इस कालेज से बिछड़ने का गम,
दोस्तों ! हम कैसे दूर कर पाएंगे, 
 हम कैसे दूर कर पाएंगे  

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धूल में उड़ते कण

धूल में उड़ते कण -सुशांत