सावन के झोंके में ,
बारिश की वो घटा ,
कह रही थी मुझसे ,
उठ अब नाम कर ,
नित नए काम कर ,
मेरे कानो पर आहट ना हुई ,
सावन गुज़रा तो ,
मै उठा
देखा तो ,
ठंड की हवाएं कह रही थी मुझसे ,
अभी समय है शेष ,
दौड पकड़ ले रफ़्तार ,
मै रजाई से ना निकला,
ठंड भी गई बीत ,
गर्मी ने अब दस्तक दी ,
कहा समय हुवा समाप्त ,
पंखा चला बिस्तर पकड़ ....
बारिश की वो घटा ,
कह रही थी मुझसे ,
उठ अब नाम कर ,
नित नए काम कर ,
मेरे कानो पर आहट ना हुई ,
सावन गुज़रा तो ,
मै उठा
देखा तो ,
ठंड की हवाएं कह रही थी मुझसे ,
अभी समय है शेष ,
दौड पकड़ ले रफ़्तार ,
मै रजाई से ना निकला,
ठंड भी गई बीत ,
गर्मी ने अब दस्तक दी ,
कहा समय हुवा समाप्त ,
पंखा चला बिस्तर पकड़ ....
उहापोह और अंतर्द्वंद को बखूबी दर्शाया है
ReplyDeleteरजाई ने छोड़ा तो पंखे ने जकड़ा
बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार...
आंतरिक द्वन्द ... कब तक फंसे रहोगे ... उठाना तो है एक दिन ... क्यों नहीं आज ...
ReplyDeleteआपको और परिवार में सभी को होली की मंगल कामनाएं ...
lovely....
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