मैं जाति ,वर्ग ,वर्ण ,सम्प्रदाय में बांटा गया हूँ,
मैं देश-परदेस ,प्रान्त-राज्य,स्त्री-पुरुष तक में बांटा गया हूँ,
मेरे हजारों टुकड़े किए गए हैं,
पर फिर भी मैं मौन हूँ,
मैं मौन हूँ
इंसानियत की बर्बरता पर,
अन्धविश्वास की ऊँचाइयों पर ,
भेद-भाव से भरे सामाजिक गलियारों पर ,
मानव के छीड आत्मविश्वास पर ,
भिखारी के दर्द पर ,
गरीबों की भूख पर,
बच्चों की सिसकियों पर ,
अमीरों के तेवर पर ,
स्त्रियों के शोषण पर ,
मजदूरों के तंग हालतों पर ,
पैसे की सत्ता पर ,
लालच से भरे इंसानों की इक्छा पर ,
मैं मौन हूँ
ठीक उसी तरह जिस प्रकार ये प्रकृति मौन है,
ये पानी ,ये हवा ,ये पेड़-पौधे ,ये सूरज,ये धरती ,ये आकाश सब कुछ तो मौन हैं,
पर मेरे मौन का अर्थ गूंगापन नहीं,
ये भाव है सहनशीलता का ,
जब कभी ये मौन टूटेगा,
दुनिया के सारे विचार तहस नहस हो जायेंगे,
एक नई सभ्यता की इबारत लिखी जायेगी,
शायद तब इंसान को इंसान होने की अहमियत समझ आएगी |
बहुत अच्छे
ReplyDeletegood..........
ReplyDeletejis tarah prakriti bahut samay tak maun nahi rahti ,usi tarah hum sabko b ye maun todna hi hoga....
ek dum sahi.....:)
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