अंधकार बढ़ता ही जाता है ,
अब तो ये अँधेरा भी खुद में ही घुटा जाता है ,
बहुत से अंतर्द्वंद जब आपके ह्रदय में ,
दे गवाही आपके गुनाह की ,
तब अवसाद बढ़ता ही जाता है ,
और आपके अंदर का इंसान बहुत छटपटाता है
न सोता न जागता है ,
न रोता न हँसता है,
न कुछ कहता न ही सुनता है,
बेबात की उलझनों में उलझा सा रहता है,
अंधेरो में रौशनी को खोजता,
अपनी घुटन को टटोलता ,
अंधेरो की गहराई में उतर कर,
न जाने क्या क्या है सोचता,
पर,
जल्द ही इस अँधेरे को घुटने से बचाना होगा ,
ये अंधकार मिटाना होगा ,
अंधेरो में दीप जलना होगा,
कोइ सूरज चमकाना होगा ,
कुछ भी करना पड़े ,
बस इस उम्मीद को बचाना होगा,
हमे अंधेरों को मिटाना ही होगा ...
printing mistake ko thik kar lo
ReplyDeleteसुंदर भाव।
ReplyDeleteजुगनुओं की कोशिशें रंग लायेंगी।
अच्छी रचना...
ReplyDeleteकुछ भी करना पड़े ,
ReplyDeleteबस इस उम्मीद को बचाना होगा
बहुत सुन्दर भाव
उम्मीद कायम रहे.. तथास्तु
andhera ghutan se bache na bache aap andhere kee ghutan se bachne ka pryaas karein..aap B Tech ke student hain..bhaivisya ujjwal hai..chand per aakar badal agah karta hai kee chand bhee ko sakta hai...isliye chand kee roshni me kar lo kaam jitna bhee ho sakta hai..chand jab chupe to insaan fursat se so sakta hai..aaur phir chand ke aate poori urja ke sath kho sakta hai..ujjwal bhabisya kee dher sari shubhkamnaon ke sath
ReplyDeletevery inspiring,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteu purvaai.blogspot.com
ReplyDeletemmeed ka daman tham kar bas aise hi likhte rahiye.shubh-kamnayen
plz vsit my blg. -
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सुंदर रचना !
ReplyDeleteदीप ऎसा जले कि
मिटे अपना अंधेरा भी
कोशिश रहे साथ में
किसी और को भी
कुछ रोशनी मिले !