कोई अपना-पराया न रहा ,
क्या खुशी के दो पल भी हमें गवारा न रहा ?
कोई तो आएगा इन सूनी गलियों में,
बहुत दिए दिलासे मैंने इस दिल को ,
पर क्यों ,
किसी का आना- जाना न रहा ?
चल पड़ा हूँ ऐसी मंजिल को ,
जिसके न रास्ते रहे ,न ठौर-ठिकाना रहा ,
जिंदगी पूछती है ये सवाल अक्सर ,
क्या नई दुनिया में अब कोई पुराना न रहा ?
गर खो जाऊँ इस सूनी भीड़ में तो कह देना,
अच्छा हुवा ,
न सुशान्त रहा ,न उसका पैमाना रहा ..
vaah,,,very well written,,,bt khud ko all time itna demoralize mat kiya karo.....
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteधन्यवाद पल्लवी जी और ऋतू जी
ReplyDeleteजिंदगी पूछती है ये सवाल अक्सर ,
ReplyDeleteक्या नई दुनिया में अब कोई पुराना न रहा ?
behatareen panktiyaan hain!
कोई तो आएगा इन सूनी गलियों में,
ReplyDeleteयकीनन .. कोई तो आएगा ही आज नहीं तो कल
अच्छी रचना