ये झरने जो है बहते ,
ये अपनी दास्ताँ है कहते ,
ये क्या-क्या है सहते,
ये कल-कल क्यों कहते ,
ये क्यों यु ही बहते ??
ये सहते है चोटें जो पत्थर से खाई ,
ये कहते है कल-कल की ,
कल पाउँगा में खुशी हर भुलाई ,
ये यूँ ही बहते ही रहते ,
की
किसी मोड पर होगी मंजिल से मुलाकात ,
हमसफ़र मिलेंगे ,मिलकर बाते करेंगे,
कुछ देर ठहर हम फिर आगे बढ़ेंगे,,..
कुछ देर ठहर हम फिर आगे बढ़ेंगे,,..
किसी मोड पर होगी मंजिल से मुलाकात
ReplyDeleteयही सच है
सुन्दर रचना ... सोच
nice,,,,,
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